उत्साहविहीन वातावरण
आजकल भारतीय रेल में रेलवे बोर्ड से लेकर जोनल और मंडल मुख्यालयों तक सभी रेलकर्मियों और अधिकारियों में मुर्दनी सी छाई हुई है. भारतीय रेल में चारों तरफ एक उत्साहविहीन वातावरण पसरा हुआ है. इसका सबसे बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि नए मंत्री का आना किसी को पसंद नहीं आया है, क्योंकि नए मंत्री की छवि साफ-सुथरी नहीं है. इससे सभी अधिकारी और कर्मचारी डरे हुए हैं. बताते हैं कि पूर्व रेलवे में हालत और भी ज्यादा ख़राब है, क्योंकि वहां के लोग अब तक जिस आदमी को बतौर एक स्क्रेप डीलर जानते थे जो कि अपने बिल पास कराने के लिए क्लर्क से लेकर कार्यालय अधीक्षक की टेबल्स के चक्कर लगाया करता था, उसे अब वह मंत्री के रूप में देखकर हैरान और थोड़ा सा परेशान हैं. उन्हें इस आदमी के हाथों में भारतीय रेल का भविष्य सुरक्षित नजर नहीं आ रहा है और वे आपस में यह भी कहते सुने जा रहे हैं कि यह आदमी भारतीय रेल को स्क्रेप में बेच डालेगा. रेलवे बोर्ड में पिछले हफ्ते जो हुआ उससे तो यही संकेत मिल रहा है.
बताते हैं कि पिछले हफ्ते मंत्री ने डीआरएम की वैकेंसी वाली फाइल लेकर सीआरबी को अपने चेंबर में बुलाया था. सीआरबी ने उन्हें बताया कि दिसंबर 2011 से 10 डीआरएम की वैकेंसी चल रही हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार इस पर मंत्री ने अपनी जेब से एक कागज़ का टुकड़ा निकाला जिसमे करीब 7 - 8 लोगों के नाम थे, उन्होंने सीआरबी से कहा कि 'इन लोगों' का नाम जोड़कर ले आओ, इन्हें डीआरएम बनाना है. इस पर सीआरबी ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि ऐसा नहीं होता है, पहले वरिष्ठता के आधार पर लिस्ट बनती है, फिर उनका पैनल बनाकर उनका विजिलेंस क्लियरेंस लिया जाता है. उसके बाद उनकी क्रमशः पोस्टिंग की जाती है. इस पर मंत्री ने सीआरबी से कहा कि फिर हम और आप यहाँ किस लिए बैठे हैं.. जाओ इनका नाम लिस्ट में जोड़कर फाइल लाओ तभी फाइल पर हस्ताक्षर होंगे..! इसके बाद सीआरबी फाइल लेकर चुपचाप वापस चले गए. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस बारहवीं पढ़े मंत्री को कैसे समझाएं?
इससे एक बात तो तय हो गई है कि इस मंत्री के साथ बोर्ड अधिकारियों को काम करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. बताते हैं कि सीआरबी भी खुद को काफी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. इसके साथ ही कुछ बोर्ड मेम्बरों को छोड़कर बाकी बोर्ड मेम्बर भी अनिश्चित हैं. मगर सेक्रेटरी रेलवे बोर्ड की मुराद पूरी हो गई है क्योंकि उन्हें उत्तर रेलवे का महाप्रबंधक बनाने का प्रस्ताव मंत्री ने पास कर दिया है. जबकि सभी फेडरेशन हताश हैं, क्योंकि बढ़ा हुआ रेल किराया नए मंत्री ने वापस ले लिया है. मगर जैसी कि उनकी मांग थी केंद्र सरकार से इसकी भरपाई किए जाने का कोई आश्वासन नहीं मिला है. रेल अधिकारियों और कर्मचारियों में उत्साहविहीनता का यह भी एक बड़ा कारण बताया जा रहा है. नए मंत्री भी कोलकाता से ही रेलवे का काम-काज चला रहे हैं और अपनी पार्टी सुप्रीमो की पूंछ पकड़कर ही चल रहे हैं. इसके अलावा हर ट्रांसफ़र, पोस्टिंग और प्रमोशन में सौदेबाजी शुरू हो गई है. बोर्ड के कुछ अधिकारियों का तो यहाँ तक कहना है कि यह तो जाफर शरीफ से ज्यादा गया गुजरा वक्त आ गया है. जे. के. साहा के बोर्ड में वापस आ जाने से चोर-चोर मौसेरे भाईयों वाली कहावत यहाँ चरितार्थ होने जा रही है.
रेलवे में करीब 2.25 पद खाली पड़े हुए हैं. इनमे से लगभग 1.25 लाख पद सिर्फ संरक्षा कोटि के हैं. हर बजट में नई - नई गाड़ियाँ चलाने की घोषणा कर दी जाती है, मगर इनके लिए अतिरिक्त मैन पावर की पहले से कोई व्यवस्था नहीं की जाती है. आरआरसी की जो विभागीय भर्ती प्रक्रिया चल रही है, वह अत्यंत धीमी है. उसमे भी भ्रष्टाचार घुसा हुआ है. जिससे समयानुसार इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है. अधिकारी और कर्मचारीगण इतने हताश और निराश हो रहे हैं कि उनमे काम करने की इच्छाशक्ति ही लगभग ख़त्म हो गई है. अधिकारी से लेकर सीनियर सबार्डिनेट स्तर तक के कर्मचारी या तो स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेकर कहीं निजी संस्थानों में अपनी जुगाड़ लगा रहे हैं, या फिर यहाँ सिर्फ अपना टाइम पास कर रहे हैं. इस निराशाजनक माहौल में भारतीय रेल का भविष्य भी अत्यंत निराशाजनक दिखाई दे रहा है. इस निराशाजनक माहौल में अधिकारी और कर्मचारीगण अपने फेडरेशनो की तरफ देख रहे हैं कि अब वही कोई कड़ा कदम उठाएं जिसमे वे उनका पूरा साथ देने का मन बना चके हैं. इस लिए आने वाले समय में सभी फेडरेशनो से एकजुट होकर भारतीय रेल को बचाने की उम्मीद की जा रही है.
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